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geetkar's Articles In Welcome
October 3, 2006 by geetkar
चलो फिर अहिंसा के बिरवे उगाएँ। बहुत लहलही आज हिंसा की फसलें प्रदूषित हुई हैं धरा की हवाएँ। चलो फिर अहिंसा के बिरवे उगाएँ।। बहुत वक़्त बीता कि जब इस चमन में अहिंसा के बिरवे उगाए गए थे थे सोयà¥...